आज से 500 साल पहले दिल्ली की सत्ता मुगलत

 सल्तन आज से 500 साल पहले दिल्ली की सत्ता मुगलत पर का परचम बुलंद हो चुका था और इसके बाद शहर के सिंहासन पर अकबर की हुकूमत थी अकबर विस्तारवादी नीति का बादशाह था शुरुआत से ही अकबर ने आज पड़ोस के राज्यों को मुगल सल्तनत के झंडे के नीचे लाने की प्रयास शुरू कर दिए पूर्व को जीतने के बाद अकबर ने अपने पश्चिम अभियान में राजपूताने की रियासतों पर मुगल ध्वज फहराने के शपथ ली इसी के तहत राजपूताने में सबसे पहले आमिर रियासत ने अपनी पगड़ी उतार कर अकबर की बादशाहत वाली मुगल सत्ता को स्वीकार कर लिया

 शुरू में तो राजपूताने की दूसरी रियासतों ने आमिर रियासत को एक तुर्क की अधीनता स्वीकारने पर देख करना शुरू कर दिया पर बाद में धीरे-धीरे इन रियासतों ने भी अकबर की सत्ता को स्वीकार कर लिया जब राजस्थान की बड़ी-बड़ी रियासतें अपनी मदमस्त शान को गुलामी की वीडियो में बांधने में लगी हुई थी उसे वक्त मात्रा मेवाड़ अपने स्वाभिमान की चमक बिखरते हुए पूरी दुनिया के साथ खड़ा था इस समय मेवाड़ पर राणा उदय सिंह का शासन हुआ करता थाजिन्होंने अपने पूर्वजों की भांति किसी की अधीनता को स्वीकार नहीं किया इन्होंने अकबर को पत्र भिजवाया कि हमारे राजा सिर्फ भगवान एकलिंग जी हैं हम तो मात्र उनके दीवान है पर फिर भी अकबर ने राणा उदय सिंह पर भारी दबाव बनाना शुरू कर दिया आज पड़ोस के राजाओं को उदय सिंह के पास भेजा जाने लगा इन्हीं परिस्थितियों में दिन गुजरते रहे


और एक दिन अचानक मौसम बदलने लगा बादलों की घमासान गर्जना के बीच राणा उदय सिंह की सबसे बड़ी रानी माता बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया मजबूत बदन बड़ी आंखें मुस्कान बिखेर चेहरा बड़ा मनमोहक लग रहा था राणा उदय सिंह ने महल की औरतों से अपनी रानी के हाल-चाल पूछे तभी पाली की दशन ने जवाब दिया शेरनी ने शेर को जाना हैकभी राणा कुंभा के बने विजय स्तंभ को देखने दौड़ते तो कभी पापा रावल की तलवार को प्रणाम करने सरदारों ने पूछा हुकुम कुमार जी का नाम क्या होगा राणा शांत होकर बोले जिस तरह सूरज अपनी चमक से धरती पर रोशन करता है इस तरह मेरा पुत्र अपने शौर्य के प्रताप से मेवाड़ को रोशन करेगा अतः इसका नाम प्रताप होगा कुंवर प्रताप सिंह सिसोदिया माता जयवंटबाई कृष्ण भक्त थी उन्होंने शुरू से ही कुंवर प्रताप को भगवान कृष्ण और महाभारत की युद्ध कलाओं का ज्ञान दिया रानी जीवंत बाइक कुंवर प्रताप को बताती कि किस तरह उनके दादा राणा सांगा ने अपनी तलवार की धार से दिल्ली की बादशाहत को रक्त से नहलाया किस तरह उनके परदादा बप्पा रावल का शौर्य के रक्त में नहाया हुआ कलेजा जब अरब की धरती पर गरज तो आने वाले 400 सालों तक कोई भी विदेशी भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया सिसोदिया वंश के इस अतीत को सुनते हुए प्रताप बड़े होने लगे समय आने पर उनको गुरुकुल भेज दिया गया

जहां प्रताप सुबह का समय गुरुकुल में बिता दे दोपहर के समय में भोले की बस्तियों में चले जाते शाम होते-होते प्रताप लोहार के गांव में निकल जाते उनको हथियार बनाने की कला सीखने में बड़ा आनंद आता था जनता के बीच इस कदर भूल मिल जाने पर प्रताप सबके चेहरे बन गए बैलों ने उनको की का कहकर बुलायातो वही लोहार ने उनको अपना राजा मनाना शुरू कर दिया कुंवर प्रताप बचपन से ही वीर स्वाभिमानी और हाथी स्वभाव के थे उनका शरीर सामान्य बच्चों से कई गुना मजबूत था उन्होंने छोटी सी उम्र में ही अफ़गानियों की बस्ती पर धावे बोलने शुरू कर दिए मेवाड़ से होकर गुजरने वाली मुगल सी पर भी गुलेल से हमला कर देते कुमार के इन कारनामों को देखते हुए सबको लगने लगा था कि बड़े होने पर भी महाप्रक में योद्धा बनेंगे और प्रताप ही भविष्य में मेवाड़ के राणा बनेंगे उदय सिंह जी की कई रानियां भी थी जिसे उनको कल 33 संताने थी पर उदय सिंह जी की सबसे प्रिया रानी थी धीर वैसा उनकी बात को राणा उदय सिंह अधिक महत्व देते थे



 इन्हीं के कहने पर राणा उदय सिंह जी ने उनके पुत्र जगमाल को मेवाड़ का भावी राणा घोषित कर दिया शास्त्रों के अनुसार सदैव बड़ा पुत्र ही राजा बनता है पर सागर जैसे विशाल हृदय वाले कुंवर प्रताप ने पिता के इस आदेश को मानते हुए छोटे भाई जगमाल को राज्य सट्टा देना स्वीकार कर लिया किंतु सभी सामंत सरदार और राज्य की जनता ने उदय सिंह के फैसले पर विरोध किया विवेक कुंवर प्रताप को ही अपना राणा मानते थे समय के साथ राणा उदय सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और आसान 1572 आते-आते उनका स्वर्गवास हो गया उनके अंतिम संस्कार में कुंवर प्रताप सहित मेवाड़ का प्रत्येक व्यक्ति आय पर कुंवर जगमाल इस समय महल में अपना राज्य भिषेक करवा रहा था ऐसी संकट की घड़ी में जगमाल के अपने पिता के अंतिम संस्कार में उपस्थित न होने के कारण सभी सरदारों ने यही गोगुंदा की पहाड़ियों पर रक्त से मेवाड़ के असली हम श्री कुंवर प्रताप का राज्याभिषेक कर दिया सरदार रावत कृष्ण दास चुंडावत में प्रताप की कमर में तलवार पढ़ते हुए ललकार लगे मेवाड़ मुकुट केसरी कुंवर प्रताप सिंह आज से मेवाड़ के राणा है की राणा प्रताप ने अपने सरदारों के साथ कुंभलगढ़ की तरफ में भाग गया जिसके दुनिया ने मेवाड़ मुकुट हिंदू और सूरज के नाम से नवादा मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठने वाले महाराणा प्रताप एक ही बार में घोड़े सहित दुश्मन को काट डालते थे वह परम स्वामी भक्त थे जिनके नाम से ही दिल्ली की बादशाह करती थी उन्होंने जंगलों में स्वीकार नहीं की 72 किलो का भला 81 किलो के छाती कवच और 208 किलो के भारी वजन के साथ महाराणा युद्ध भूमि में निकलते जिनके रौद्र रूप को देख सामने वाला दुश्मन अपना रास्ता पलट देता हल्दीघाटी के युद्ध में विशाल मुगल सी को जबरदस्त टक्कर थी डाइवर्ट के युद्ध में मुगल सत्ता को घुटनों पर ले आए अपनी छापामार युद्ध नीति के दम पर मेवाड़ को फिर से आजाद करवरकर केसरिया ध्वज लहरा दिया मुगलों के 36 किलो को जीतकर 40000 मुगलों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया जिनके भले की नोक से शत्रु का रक्त कभी सुख नहीं

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