जब जब इस धरती पर धर्म बड़ा है समय-समय पर स्वर और देवताओं ने इस धरती

 जब जब इस धरती पर धर्म बड़ा है समय-समय पर स्वर और देवताओं ने इस धरती पर मानव रूप में जन्म लेकर फिर से धर्म की स्थापना की है इस प्रकार देवताओं के पुत्रों ने भी धर्म की स्थापना के लिए धरती पर जन्म लिया था महाभारत की कथाओं के अनुसार अभिमन्यु को चंद्र देव का पुत्र भी माना जाता है पौराणिक कथा के कारण सभी देवताओं ने अपने पुत्रों को अवतार का वियोग सहना नहीं कर सकते थे पुत्र केवल वर्ष तक की आयु के लिए यात्रा की कोख में थी उसे बता रहे थे जिसे अभिमन्यु ने कोख में ही सुन लिया था पर



 सुभद्रा के बीच में ही सो जाने के कारण वह भी उसे बाहर आने की विधि नहीं जान पाए जिसका परिणाम हुआ उनकी मृत्यु क्रीडा हारने के बाद द्रोपदी के साथ सभी पांडवों को 13 वर्ष के लिए वनवास भेज दिया गया था इस अवधि के दौरान सुभद्रा अपने भाइयों के साथ द्वारका में ही रही जहां उनके साथ अभिमन्यु की भी परवरिश हुई अभिमन्यु को उसके मामा बलराम और कृष्ण द्वारा शास्त्रों और युद्ध में प्रशिक्षित किया गया था और अभिमन्यु के कौशल को जानकर बलराम ने शिव का रौद्र धनुष उसे सौंप दिया अर्जुन की तरह ही एक कुशल धनुर्धर हो मैं तुम्हें महादेव शिव का रौद्र धनुष देता हूं जिससे छोड़े गए बाद अचूक होंगेजहां अभिमन्यु द्वारका में युद्ध कला की शिक्षा दीक्षा ले रही थी वहीं दूसरी और पांडव अपने अज्ञातवास के आखिरी वर्ष मत्स्य नरेश राजा विराट के यहां 20 बदल कर रह रही थी जब राजा को अर्जुन की असलियत का पता चला तो उन्होंने अपनी पुत्री पुत्र का हाथ अर्जुन के हाथ में देने की इच्छा जताई गुरु शिष्य का संबंध बताते हुए उनका ही प्रस्ताव स्वीकार कर दिया और अपने पुत्र के साथ उतर के विवाह का सुझाव रखा महाराज मैं उत्तर से विवाह नहीं कर सकता इतने महान पिता का पुत्र होने के कारण उन्होंने तनिक भी संकोच नहीं किया 15 वर्ष की आयु में उसे कर दिया उसके पश्चात कुरुक्षेत्र का युद्ध प्रारंभ हो गया उनके अनुसार जब अभिमन्यु को कुरुक्षेत्र के युद्ध के बारे में पता चला तो वह अपने पिता के पक्ष में तैयार होने लगे परंतु मात्रा भाव से विभोर उनकी माता ने अभिमन्यु को उसकी इतनी का वास्ता देते हुए उन्हें रोकना चाहा जिसे खुद श्री कृष्ण ने शिक्षा दी है और इस वक्त मेरे पिता को मेरी आवश्यकता है


 यदि मैं संसार के मोह को ही देखता रहूंगा तो मैं वीर छतरी कैसे खिलाऊंगा आप मुझे आगे दीजिए अपनी माता से आशीर्वाद लेकर अभिमन्यु सभी अस्त्रों शास्त्रों के साथ युद्ध के लिए क्षेत्र का युद्ध कल 18 दिनों तक चला जिसमें युद्ध के पेड़ में दिन को अभिमन्यु के युद्ध कौशल दान के लिए जाना जाता है ऐसा अर्जुन युद्ध करते दूर चले गए थे फायदा उठाते हुए गुरु द्रोण को एक योजना सूची और वह दुर्योधन से बोले दुर्योधन क्षेत्र से दूर है चक्रव्यूह निर्माण का यह उचित समय है मैंने चक्रव्यूह को भेजने का तरीका और हम उन्हें मार सकते हैं इसके बाद क्रोध पांडवों को चक्रव्यूह भेजने के लिए ललकारने लगे जिसे सुनकर युधिष्ठिर चिंता में पड़ गए और इसे भागते हुए अभिमन्यु ने उनसे कहा प्रभु को भेज कर अंदर जाने का तरीका मैं जानता हूं वह कैसे चक्रव्यूह का ज्ञान तो सिर्फ अर्जुन के पास ही है जब मैं अपनी माता के पिताजी ने मेरी माता को चक्रव्यूह के रहस्य के बारे में बताया था जिसे मैंने खूब में ही सुन लिया था परंतु चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुझे नहीं आता

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