कहानी छोटी सी भूल
छोटी सी भूल
सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर एक छोटा सा टापू था । वहाँ जीवन्तराय नाम का एक वीर और प्रतापी राजा राज्य करता था । उसके पास ऐसी सेना थी जिसमें सभी छः फुटे जवान भर्ती किए गए थे । मजे की बात यह थी कि छः फुट से कम लंबाई का जवान यदि कभी किसी सेनानायक की भूल से भर्ती हो जाता था, तो उसे राजा स्वयं सेना से अलग कर देता था। सेना में अरबी घोड़े भी थे। उन घोड़ों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जितना वे स्थल पर सरपट दौड़ सकते थे उतना ही वह पानी में भी तेजी से तैर सकते थे। जीवन्तराय ने इसी सेना की शक्ति से आस-पास के सभी राजाओं पर विजय प्राप्त की थी। वे राजा जीवन्तराय को 'कर' तथा तरह-तरह की भेंटे देते थे। जो राजा 'कर' देने से मना करता था उसको पकड़त्रा कर जेल में डलवा दिया जाता था । जेल में उससे रस्से बंटवाये जाते थे और चक्की पिसवायी जाती थी । निर्दोष राजाओं को साधारण सिपाहियों की मार भी खानी पड़ती थी । इस प्रकार चार राजा उसकी कैद में पड़े हुए थे । राजा का टापू बहुत सुरक्षित स्थान पर था । इसलिए उस पर किसी शक्तिशाली राजा ने आक्रमण करने का साहस नहीं किया था । एक दिन जीवन्तराय अपने दरबार में बैठा हुआ।
देख रहा था । उसी समय शंकर नामक एक चारण राजा के दरबार में आया परन्तु तुरन्त ही लौट गया । थोड़ी देर बाद वह पुनः दरवार में आया । इस बार वह सिर पर दूसरी टोपी पहने हुए था । परन्तु वह पैर बढ़ाता हुआ राजा के सामने जा खड़ा हुआ । उसने राजा की गुहार की और उसकी प्रशंसा में गीत गाने लगा । दरबारी शंकर की इस हरकत को देखकर हैरान थे । आखिर शंकर दरबार में आकर पहली बार क्यों लौट गया? फिर वह टोपी बदलकर क्यों आया? क्या इस सबमें कोई भेद की बात छिपी हुई है? दरबारियों ने यह बात राजा के कान में डाल दी। राजा जीवन्तराय ने शंकर से इस भेद का कारण जानना चाहा । शंकर कहने लगा-'अन्नदाता ! यह बड़ी लम्बी दास्तान है। मैं गिरिनार के राजा खूबचंद के यहाँ सेवा में था । वह सदैव प्रसन्न रहते हैं। एक दिन राजा साहब बहुत खुश थे । उन्होंने मुझसे कहा-'शंकर, आज मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हारी जं इच्छा हो माँग लो ।" मैंने राजा साहब से कहा-'मेरी बहुत इच्छा है कि आपक तरह की टोपी मैं भी सिर पर पहनूँ । इस पर राजा साहब बोले- 'अरे! यह तूने क्यों माँग लिया। मैं अपनी टोपी तुझे कैसे दे सकता हूँ। इसकी तो बहुत इज्जा है।