इतिहास ने हमें बहुत कुछ दिया
इतिहास ने हमें बहुत कुछ दिया कुछ बहुत अच्छा तो कुछ बहुत बड़ा जहां अपने किस्सों से इतिहास ने हमें गोरांवित किया तो वहीं कुछ किस हमारे दिल के नासूर बनकर रह गए इतिहास ने अपने आंचल में इसी तरह के किस को सहेज रखा है जिसे सुनते ही धमनियों में बहने वाले रक्त की रक्त सामान्य से कहीं अधिक हो जाती है यह घटना थी 18वीं साड़ी में लड़े गए सबसे विनाशकारी युद्ध में से एक पानीपत के तीसरे युद्ध की जिसने एक ही दिन में हजारों योद्धाओं को कालका ग्रास बना दिया तो लिए डिमांडिंग पंडित के साथ चलते हैं पानीपत के उसे विनाशक युद्ध के काल में 18 वीं सदी की शुरुआत हो चुकी थी औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत की जमीन पर सीना ताने खड़ा मुगल साम्राज्य अब घुटनों पर आ चुका था मराठाओं का भगवा परचम बुलंदी पर लहरा रहा था पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में राजपूताना मालवा और गुजरात के राजा मैराथन के साथ आम मिले थे यह वह दौर था जब संपूर्ण हिंद की कमान मराठाओं के हाथों मे
मराठाओं के लगातार आक्रमणों ने मुगल बादशाहों की हालत बस से बत्तर कर दी थी उत्तर भारत के अधिकांश शीला के जहां पहले मुगलों का शासन था अब वहां मैराथन का कब्जा हो चुका था 1758 में पेशवा बाजीराव के पुत्र बालाजी राव ने पंजाब पर विजय प्राप्त करके मराठा साम्राज्य को और अधिक विस्तृत कर दिया किंतु उनकी जितनी ख्याति बड़ी उनके शत्रुओं की संख्या में भी उतनी ही बढ़ोतरी हुई खेर मराठाओं का परचम अब्बासदन की छाती पर लहरा रहा था पर इस बार मराठाओं का सीधा सामना अफगान के नवाब अहमद शाह अब्दाली के साथ होना था अफगान की सीमाओं पर लहराते मराठी परचम को अब्दाली ने एक चुनौती माना इसी के तहत अब्दाली ने साल 1759 को वस्तुओं और बलोच जनजातियों को एकत्रित करके एक विशाल सेवा का निर्माण किया और इसी सेवा के साथ अब्दाली भारत की तरफ बढ़ने लगा उसने रास्ते में आने वाले कई छोटे-छोटे राज्यों को निस्थानाभूत कर दिया इसी तरह अब्दाली अपनी सेवा के साथ आगे बढ़ता रहा अब्दाली के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए बहु पेशवान एक विशाल सेवा के साथ अब्दाली को पानीपत के मैदाने में घेर लिया इसके बाद फरवरी सन 1761 को आगाज हुआ पानीपत के तीसरे युद्ध का जब अट से कटक तक मराठाओं ने भगवा लहराया सन 1707 के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा देखा गया संपूर्ण भारत पर मराठा हिंद साम्राज्य के आधिपत्य का स्वप्न अब पूर्ण होता प्रतीत हो रहा था 1758 में मराठाओं ने दिल्ली सहित लाहौर पर कब्जा कर लिया तथा तैमूर साहब दुर्रानी को वहां से गड्ढे दिया अब मराठा साम्राज्य की हदें उत्तर में सिंधु की धारों से लेकर हिमालय की पहाड़ियों तक और दक्षिण के मैदाने से लेकर अफगान की घाटियों तक फैल चुकी थी उन दिनों मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजीराव के हाथों में थी बालाजी ने तय किया कि दिल्ली के ध्वज से छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से हुकूमत कायम की जाए इसी के तहत बालाजी ने अपने पुत्र विश्वास राव को दिल्ली के मुगल सिंहासन पर बैठने का पक्का मन बना लिया था इस दौर में दिल्ली पर मुगलों का नाम मात्र का शासन रह गया था और वह सभी मैराथन के विस्तृत होते हुए साम्राज्य को देखकर भयभीत हो रहे थे साल 1758 में पंजाब पर किए गए हमले के बाद लाहौर तक अपना कब्जा करने के बाद मराठों ने वहां के शासक तैमूर शाह दुर्रानी को पूरी तरह से खरीद दिया तैमूर शाह अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था अब्दाली को यह बात ना गवार गुजरी जिसके बाद उसने भारत पर हमले का मन बना लिया सबसे पहले उसने पंजाब के उन जगहों पर हमला किया जहां मराठा फौजी कम संख्या में थी उसके